
आपके साथ भी, जीवन के बाद भी"– अंतिम यात्रा की सम्मानजनक जिम्मेदारी
कुछ लोग जीवन में ऐसे मोड़ पर होते हैं, जहाँ अपनों का साथ छूट जाता है, या वंश में कोई नहीं होता। ऐसे में, उनकी अंतिम यात्रा की जिम्मेदारी कौन उठाएगा?
"ओम संकल्प" ट्रस्ट का उद्देश्य ऐसे ही व्यक्तियों को सम्मानजनक अंतिम विदाई देना है, जो इस दुनिया में अकेले हैं, जिनके अपने रिश्तेदारों ने उन्हें छोड़ दिया है, या जो अपनी मृत्यु के बाद भी किसी पर बोझ नहीं बनना चाहते।'ओम संकल्प' ट्रस्ट ऐसे ही व्यक्तियों के लिए संकल्प लेता है कि उनकी अंतिम यात्रा पूर्ण धार्मिक विधियों और सम्मान के साथ संपन्न हो।
"ओम संकल्प" ट्रस्ट का उद्देश्य पूरी तरह से शास्त्र-सम्मत है। शास्त्र स्पष्ट रूप से यह कहते हैं कि यदि किसी का कोई उत्तराधिकारी न हो, तो कोई अन्य व्यक्ति संकल्प लेकर उसका अंतिम संस्कार, पिंडदान, अस्थि विसर्जन और श्राद्ध कर सकता है।
निम्नलिखित परिस्थितियों में हमारी सेवा विशेष रूप से सहायक हो सकती है:

1. वे लोग जो पूरी तरह अकेले हैं (Unclaimed Individuals)
➡ ऐसे लोग जिनका कोई परिवार नहीं है या जो अकेले जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
➡ वृद्धाश्रम या अस्पतालों में भर्ती लोग जिनकी मृत्यु के बाद कोई दावा करने वाला नहीं होता।
➡ मानसिक रूप से अस्वस्थ या लावारिस मिले लोग जिनकी पहचान अज्ञात रहती है।
➡ अब आप अकेले नहीं, ओम संकल्प हे आपके साथ।
2. जिनका परिवार होते हुए भी अंतिम संस्कार के लिए कोई तैयार नहीं (Neglected by Family)
➡ पारिवारिक विवाद या रिश्तों की कड़वाहट के कारण जिनका परिवार अंतिम संस्कार करने से इनकार कर देता है।
➡ वृद्ध माता-पिता जिन्हें उनके बच्चों ने छोड़ दिया है और मृत्यु के बाद भी कोई देखने वाला नहीं होता।
➡ ऐसे व्यक्ति जिनकी मृत्यु विदेश में हुई हो और उनके परिजन उनकी अंतिम क्रियाओं को संपन्न करने में असमर्थ हों।
➡ ओम संकल्प संस्था भी आपका परिवार हे।


3. वे लोग जो अपने अंतिम संस्कार की योजना पहले से बनाना चाहते हैं (Pre-Planned Last Rites)
➡ जो लोग चाहते हैं कि उनकी अंतिम यात्रा उनकी इच्छानुसार संपन्न हो।
➡ वे व्यक्ति जो किसी पर बोझ नहीं बनना चाहते और पहले से ही अपने अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी सौंपना चाहते हैं।
➡ बीमार या वृद्ध लोग जो यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके बाद उनका अंतिम संस्कार गरिमापूर्ण तरीके से हो।
➡ ओम संकल्प आपके अंतिम सफर में भी आपके साथ।
4. बेघर, अनाथ, और समाज से कटे हुए लोग (Homeless & Destitute)
➡ सड़क पर रहने वाले लोग, जिनका कोई सहारा नहीं है।
➡ अनाथालयों या वृद्धाश्रमों में रह रहे लोग, जिनका परिवार उनसे संपर्क में नहीं है।
➡ असहाय महिलाएं, विधवाएं या त्यक्त लोग जिन्हें समाज ने अलग कर दिया हो।
➡ बेसहारों का सहारा बनना ही हमारा उद्देश्य


5. दुर्घटना या अन्य अप्रत्याशित कारणों से मृत लोग (Unclaimed Bodies & Accidental Deaths)
➡ अस्पतालों या पुलिस द्वारा अधिग्रहित लावारिस शव, जिनके परिजनों का पता नहीं चल पाता।
➡ सड़क दुर्घटनाओं, आत्महत्या, या अन्य अप्रत्याशित कारणों से हुई मृत्यु जिनमें कोई दावेदार नहीं होता।
➡ ट्रेन, बस, या सार्वजनिक स्थलों पर मृत पाए गए लोग जिनकी पहचान अज्ञात रहती है।
➡ मृत व्यक्ति की सम्मानजनक विदाई हमारा संकल्प
हमारा उद्देश्य:
"हम मानते हैं कि मृत्यु केवल एक शारीरिक यात्रा का अंत नहीं, बल्कि आत्मा की नई यात्रा की शुरुआत होती है। हर व्यक्ति को सम्मानजनक अंतिम संस्कार और मोक्ष प्राप्त करने का अधिकार है। हमारा संकल्प है कि कोई भी मृत व्यक्ति लावारिस न रहे और उसकी अंतिम यात्रा गरिमामय तरीके से पूरी हो।"
"अंतिम सफर में भी कोई अकेला न रहे – यही हमारा संकल्प है!"

हमारे इस प्रयास को शास्त्रों ने अपने शब्दों में समर्थन दिया हे:-
1. गरुड़ पुराण (प्रेतकल्प - अध्याय 10, श्लोक 26-27)
श्लोक: "यदि प्रेतस्य कर्ता न स्याद् दायादो वा जनोऽपि वा। राजा वा राजमात्यो वा स प्रेतकार्यं समाचरेत्॥"
अर्थ: यदि मृत व्यक्ति का कोई कर्ता न हो—न कोई दायाद (वंशज) न हो और न ही कोई संबंधी—तो राजा या राजा के प्रतिनिधि को उसका अंतिम संस्कार और श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए।
संदर्भ: यह श्लोक दर्शाता है कि यदि किसी व्यक्ति का कोई उत्तराधिकारी नहीं है, तो समाज या शासकीय व्यवस्था को उसका अंतिम संस्कार संपन्न करना चाहिए। इसका आधुनिक स्वरूप ‘ओम संकल्प’जैसी संस्थाओं द्वारा निभाया जा सकता है।
2. मनुस्मृति (अध्याय 5, श्लोक 92)
श्लोक: "दत्त्वा चोद्दिश्य विधिवत् पितृभ्यः पिण्डदानतः। न तु वा सन्ततेः शुद्धिर्भवत्येव विधीयते॥"
अर्थ: यदि कोई अपने पितरों के लिए विधिपूर्वक पिंडदान करता है, तो वह उनका ऋण चुकाता है। यदि संतान न हो, तो भी पिंडदान करने से उनकी आत्मा को शुद्धि प्राप्त होती है।
संदर्भ: यह श्लोक स्पष्ट करता है कि पिंडदान केवल संतान ही नहीं, बल्कि कोई भी संकल्प के साथ कर सकता है।
3. महाभारत (अनुशासन पर्व, अध्याय 88, श्लोक 7-8)
श्लोक: "यस्य नास्ति स्वयं श्रद्धा न च सन्ततिरेव च। तस्यार्थाय सुतः शिष्यः सखा वा श्राद्धमाचरेत्॥"
अर्थ: जिस व्यक्ति की कोई संतान नहीं होती या जो स्वयं श्राद्ध कर्म करने में असमर्थ होता है, उसके लिए उसका शिष्य, मित्र या कोई भी अन्य व्यक्ति श्रद्धा से श्राद्ध कर्म कर सकता है।
संदर्भ: यह श्लोक विशेष रूप से संकल्प द्वारा श्राद्ध और अन्य कर्म करवाने की परंपरा को प्रमाणित करता है।
4. याज्ञवल्क्य स्मृति (अध्याय 1, श्लोक 217)
श्लोक:"अपुत्रस्य कृतं श्राद्धं सुतवत् फलदायकम्। येन केनापि दत्तं तु पितृणां तृप्तिकारणम्॥"
अर्थ:य दि किसी निःसंतान व्यक्ति के लिए कोई अन्य व्यक्ति श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, तो वह उसी फल को प्राप्त करता है जैसे कि उसका पुत्र करता। चाहे कोई भी यह कर्म करे, यह पितरों के लिए संतोषजनक होता है।
संदर्भ: यह श्लोक स्पष्ट करता है कि किसी भी शुभचित्त व्यक्ति द्वारा संकल्प लेकर पिंडदान और श्राद्ध किया जा सकता है।
5. अपस्तंब धर्मसूत्र (प्रतिष्ठा पर्व, श्लोक 4.5.15-16)
श्लोक:"धर्मः कर्तव्यो नृभिः सर्वदैव। यथा शक्यं तु तत्कर्तव्यं स्वशक्त्या पितृकर्म च॥"
अर्थ: हर मनुष्य को धर्म का पालन करना चाहिए और अपनी सामर्थ्य के अनुसार पितरों के लिए कर्म करना चाहिए।
संदर्भ: यह श्लोक यह दर्शाता है कि धार्मिक कर्मों का निर्वाह संकल्प और आस्था से कोई भी कर सकता है, चाहे वह व्यक्ति का रक्त-संबंधी हो या न हो।